आया सावन बरसा पानी




दिन रात व्योम में उड़-उड़ कर
फिर मोह में शायद थोडा पड़ कर
बेचैन हुए काले बादल
अम्बर तजकर भागे पागल
उनसे फिर छलका पानी।
आया सावन बरसा पानी।।

धरती की थी आँखे उदास
प्यासी थी उसकी साँस-साँस
नभ उसके दुःख से दुखित हुआ
बादल सा काजल द्रवित हुआ
आँसू बनकर बहका पानी।
आया सावन बरसा पानी।।

धरती से जब से अलग हुआ
निस्तेज हुआ निष्प्राण हुआ
पूरी कर निष्ठुर कठिन सजा
सूरज की कैद से छूट भगा
बरसा प्रेम का तरसा पानी।
आया सावन बरसा पानी।।

स्थिर को गति देने आया
नवजीवन ये बोने आया
आशाओं-उम्मीदों का प्रतीक
पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतीक
सर्जन करने निकला पानी।
आया सावन बरसा पानी।।

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